Thursday, August 30, 2012

तू घणी चौधरण हो रही सै ?

एक बै एक बाबा रोटी-चून मांगण लाग रहया था किसै गाम में । एक ताई उसतैं बोल्ली - बाबा, म्हारे घर तैं ले आया किमैं ?

बाबा बोल्या - ना बेटी, तेरी बहू नाट-ग्यी ।

ताई कै ऊठ्या छो - आंछ्या, वा न्यूं क्यूकर नाट-ग्यी ? चल बाबा तू मेरी गैल चाल, मैं देखूंगी वा क्यूकर नाट-ग्यी !

बाबा हो लिया उसकी गैल । घरां जा-कै ताई नै बहू बुलाई रूका दे-कै । फिर बोल्ली - आंहे बहू ! तू कुछ देण तैं क्यूकर नाट-ग्यी बाबा नैं, तू घणी चौधरण हो रही सै ? नाटणा होगा तै मैं नाटूंगी ! चल बाबा आग्गे नै !!

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