एक जाट कै बाळक ना होवैं थे । एक दिन एक Bahman आ-ग्या अर जाटणी नै आपणा रोणा रो दिया । बाहमण बोल्या - बेटी, रोवै मतना, मैं परसों बद्रीनाथ जाऊँ सूँ, ऊड़ै तेरे नाम का दीवा जळा दूंगा - अर भगवान सब भली करैंगे, चिन्ता ना करियो ।
वो बाहमण दस साल पाच्छै उस जाट कै घरां आया, तै देख्या अक ऊड़ै आठ-नौ बाळक हांडैं थे । उसनै पड़ौसी तैं बूझी अक ये बाळक किसके सैं ? पड़ौसी बोल्या अक महाराज ये उस्सै के सैं जिसका तू दस साल पहल्यां बद्रीनाथ में दीवा बाळ-कै आया था ।
बाहमण बोल्या - रै, यो जाट कित सै ?
पड़ौसी बोल्या - महाराज, वो तै कल बद्रीनाथ चल्या गया - तेरे दीवे नै बुझावण !!!
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वो बाहमण दस साल पाच्छै उस जाट कै घरां आया, तै देख्या अक ऊड़ै आठ-नौ बाळक हांडैं थे । उसनै पड़ौसी तैं बूझी अक ये बाळक किसके सैं ? पड़ौसी बोल्या अक महाराज ये उस्सै के सैं जिसका तू दस साल पहल्यां बद्रीनाथ में दीवा बाळ-कै आया था ।
बाहमण बोल्या - रै, यो जाट कित सै ?
पड़ौसी बोल्या - महाराज, वो तै कल बद्रीनाथ चल्या गया - तेरे दीवे नै बुझावण !!!
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